भारत की शिक्षा व्यवस्था पर नज़र डालती फ़िल्म पाठशाला करते हुए शाहिद कपूर को अपने स्कूल के दिन ख़ूब याद आए.
मिलिंद उइके निर्देशित ये फ़िल्म सरस्वती विद्या मंदिर नाम के स्कूल की कहानी है. इस स्कूल के प्रिसिंपल का किरदार नाना पाटेकर ने निभाया है और इस विद्यालय के अध्यापक हैं शाहिद कपूर, आयशा टाकिया और सुशांत.
शाहिद कपूर फ़िल्म के बारे में कहते हैं, "ये फ़िल्म अध्यापकों के उस संघर्ष की कहानी कहती है जहां वो बच्चों की पढ़ाई और खेल-कूद के स्तर को लगातार सुधारने की कोशिश करते हैं लेकिन इस प्रयास में उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है."
शाहिद कहते हैं कि फ़िल्म में अध्यापक पढ़ाई, खेलकूद और बाक़ी अन्य गतिविधिओं के बीच एक सही संतुलन बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं.
शाहिद कपूर ने कहा, "इस फ़िल्म में कई ऐसे छोटे-छोटे लम्हे हैं जो छात्रों की समस्याओं पर रोशनी डालते हैं. उदाहरण के लिए अचानक स्कूल की फ़ीस बढ़ जाना. कुछ बच्चों के माता-पिता अचानक बढ़ी फ़ीस तय वक़्त पर नहीं चुका पाते और इससे बच्चे स्कूल में काफ़ी शर्मिंदा होते हैं."
फ़िल्म में अध्यापक बनीं आयशा टाकिया कहती हैं कि स्कूल में बिताए लम्हें हमेशा याद रहते हैं चाहे वो सहपाठी हों या एक अच्छा अध्यापक.
टाकिया कहती हैं, "जब आप स्कूल में होते हैं तो आप चाहते हैं कि आप जल्दी से बड़े हो जाएं लेकिन बड़े होकर समझ आता है कि स्कूल में बिताए साल ही आपके जीवन के सबसे यादगार लम्हे थे."
शाहिद कपूर मानते हैं कि आजकल की स्कूली शिक्षा की दशा पर बन रही फ़िल्म 'पाठशाला' एक चुनौती-भरी कहानी है.
शाहिद कहते हैं, "आमतौर पर लोग शिक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों पर फ़िल्म नहीं बनाते क्योंकि उन्हें लगता होगा कि ये बोरिंग और डॉक्यूमेंट्री जैसी होगी. ऐसे विषय को मंनोरंजक बनाना एक चुनौती तो है."
शाहिद कपूर कहते हैं कि वो ये फ़िल्म इसलिए भी करना चाहते थे ताकि लोगों का ध्यान आजकल की स्कूली शिक्षा से जुड़ी समस्याओं की तरफ जाए